अंकल सैम को फिर से सलाम!
बहुत दिनों बाद आपसे गुफ़्तगू हो रही है। काफ़ी दिनों तक ना मैं आपको ख़त लिख पाया ना आप ही अपनी मोहब्बत दिखा पाए। उम्मीद करता हूँ आप मुझे याद तो कर रहे होंगे। आपको तो पता ही है चचा मैं आपकी मोहब्बत में पागल रहता हूँ।
चचाजान, इधर हिन्दोस्तान के मिज़ाज में ग़ज़ब की तब्दीली आयी है। दो बातों का हल्ला है- एक तो ये कि देश अचानक से इंटॉलरंट हो गया है, और दूसरा ये कि दिल्ली में पोल्यूशन बढ़ी है। और मंटो साहब का ये भतीजा दिल्ली में ही रहता है। आज दिल की बात कहता हूँ चचा- बस अब बुला लो अपने पास। ये देश ग़ज़ब बेवक़ूफ़ हो चुका है। आपसे कुछ भी नहीं सीख पा रहा।
पहली बात करते हैं इंटॉलरंट वाली बहस पर। चचा, ये बताइए कि आज तक आपको किसी ने इंटॉलरंट कहा? और जो किसी छोटे देश (माने बेवक़ूफ़ देश) ने कह भी दिया तो उसके साथ क्या किया गया? अब आपके फ़ोर्मूले को अगर हिन्दोस्तान के आला वज़ीर अपना रहे हैं तो क्या ग़लत है? कुछ ग़लत नहीं है! मुझे तो कई वियतनाम याद आते हैं चचा। और तो और जो लोग आपकी अपनी सर ज़मीन पर आपके ख़िलाफ़ बोलते थे उन्हें भी आपने ग़ज़ब तरीक़े से चुप करवा दिया था! वाह वाह! चचा हों तो आपकी तरह। आपने कितना सहा है चचा। आँखों में आँसू आ जाते हैं सब कुछ याद करके। अब ऐसे में आपको कोई इंटॉलरंट बोल दे तो कैसे सहेंगे हम!
दिक़्क़त है कि यहाँ- माने हिन्दोस्तान में- ये लोग जो मोर्चा सम्भाले हुए हैं वो काम ठीक से नहीं कर पा रहे। करेंगे भी कैसे? ये मोदी तो हमेशा घूमते रहता है। इसकी भी ग़ज़ब की क़िस्मत है चचा। आपका ये भतीजा कितने सालों से मुल्क के बाहर भागना चाहता है- लेकिन नहीं। आप तो वीज़ा लगवा नहीं रहे और ये मोदी हर दूसरे दिन घूम कर आ जाता है। साँप समझते हैं ना- स्नेक- लोट जाता है सीने पर।
ख़ैर दूसरे मुद्दे के बारे में बताता चलूँ। दिल्ली शहर की हवा में ज़हर घुल गया है! ना ना- वैसा नहीं जैसा आपने जापान में घोला था (वो भी ग़ज़ब की करतबबाज़ी थी चचा)। ये थोड़ा अलग है। मामला ये है कि दिल्ली में मोटर गाड़ियाँ बहुत हो गयी हैं। इतनी की पूछिए मत! अलावा इसके अलग-अलग कारख़ाने भी बहुत लग चुके हैं। कुछ काम-काज तो इधर भी हो रहा है। अब ये सभी कुछ पता नहीं ऐसा क्या करते हैं कि हवा में ज़हर घुल जाती है। ऐसा मैं नहीं कहता- केजरीवाल और कुछ और ख़ास आदमी कहते हैं। इन्होंने बोला कि ये शहर दुनिया का सबसे ज़हरीला शहर है! मुझे तो बस आपकी याद आ गयी चचा! ये बेवक़ूफ़ क्या समझें ज़हरीली हवा क्या होती है। मंटो साहब ने आपको जो ख़त लिखे थे उसमें शायद उन्होंने इस सिलसिले में बात की थी- ज़रा ख़त दुबारा पढ़िएगा। ज़हरीली हवा तो जापान, वियतनाम, इराक़, अफगानिस्तान, फ़िलिस्तीन में फैली थी! हाँ मानना पड़ेगा आपके घर कभी नहीं फैली, बल्कि आपने सभी जगह से ज़हरीली हवा का सफ़ाया करवाया!
चचा, ये केजरीवाल तो मेरी बात नहीं सुनता। ये कुछ अजीब फ़ोर्मूले अपना रहा है। एक दिन औड नम्बर की गाड़ियाँ चलाने की बात करता है तो एक दिन ईवेन। सरफिरा मालूम होता है चचा। आप ही क्यों नहीं आ जाते और शहर से ज़हर साफ़ कर देते? आपको तो इस काम में महारत हासिल है। आप समझाइए इस सरफिरे केजरीवाल को। दिल्ली शहर के लोग भी बड़े बेवक़ूफ़ हैं। बात करता हूँ तो मुँह से काइयाँ आ जाती है! बस आपका ही सहारा है। ये पूरा देश आपकी राह देख रहा है। आप समझ ही गए होंगे यहाँ बहुत सारे नए बाज़ार लगाए जा सकते हैं।
एक आइडिया है- आप अच्छी हवा बेचना शुरू क्यों नहीं कर देते? जब पानी बिक सकती है तो हवा भी बेचा जा सकता होगा। माहौल तो बन चुका है- आप बाज़ार लगा दीजिए। कोला-पेप्सी की तरह साँस भी बेचिए! वाह वाह! मज़ा आ जाएगा।
लेकिन याद रहे चचा, इस देश में कुछ नहीं रखा। निहायत बेवक़ूफ़ लोग हैं। इस देश को जला दीजिए और हमको अपने पास बुला लीजिए।
जल्द मुलाक़ात की उम्मीद में,
मंटो साहब का भतीजा।
First published on Facebook on December 9, 2015