चचाजान क्या हाल?
पता है सब हाल बढ़िया ही होगा| हाल खराब तो हमारे मुल्कों का हुआ करता है| पर ये नयी बला ‘शट डाउन’ क्या निकाल दी? सच कहता हूँ चचाजान आपकी हरकतें सुन कर एहसास हो जाता है कि हमारे मुल्क को अभी बहुत कुछ सीखना है| ये हुई कोई बात- शट डाउन! मुल्क की हालत भले ही खस्ता हो लेकिन उसे बयाँ भी ऐसे करते हैं जैसे अभी-अभी मुग़ल बादशाह कोई चार शेर का शिकार करके लौट रहें हो! शट डाउन!
चचाजान, बताता चलूँ कि हमारे यहाँ भी मजेदार खेल चल रहें हैं आजकल| सियासी रंग तेज़ है| वो वक्त करीब आ बैठा है जब तख़्त उछाले जायेंगे- माने चुनाव आने वाले हैं| आपके यहाँ के इलेक्शन की तरह तो नहीं है, लेकिन इसका भी अपना मज़ा है| आपके यहाँ तो क्या इलेक्शन होते हैं- वाह वाह! इतने लंबे कि छोटे लड़कों के मूछ के बाल निकल आयें इन्तेज़ार करते कि मियाँ नया प्रेसिडेंट बनेगा कौन! अब इतने डीबेट कराते हो आप, कोई मामूली बात तो है नहीं| और इतने डीबेट कराने के बाद जो बंदे खोज कर देते हो दुनिया पर हुकूमत करने को, उनके तो कहने ही क्या- तख़्त सम्हालते ही चार मुल्क नेस्तानाबूद! ये हुई बड़े इंसान की पहचान|
आपको फिर से बताता चलूँ कि हिंदुस्तान में भी एक मजेदार तमाशा शुरू होने वाला है| मंटो साहब के इस भतीजे को पूरा यकीं है कि आप इस तमाशे को पसंद करेंगे| आखिर एक मदारी तमाशे को पसंद ना करे तो कौन करे- हम जैसे बेवकूफ तमाशबीन? (वैसे तो हम भी कर ही लेते हैं!) तो चचाजान मुआमला ये आन पड़ा है कि हिन्दुस्तान एक बहुत ही अजीब दौर से गुजरने वाला है| मुल्क की हालत तो आपसे छुपी है नहीं- कुछ बकाया तो आपका भी बनता होगा| लेकिन बात मजेदार ये है कि हमारे यहाँ कुछ बंदरों के हाथ लग गयी है नयी नारियल- फेसबुक| चचाजान आपके लोग तो पढ़े-लिखे बेवकूफ, यहाँ वाले तो बिन पढ़े बेवकूफ! (माफ करना चचा आपके लोगों को बेवकूफ कहा- आपको अभी तक नहीं कहा| आप तो शातिर हो!) अब दिक्कत ये कि ये दिन भर या तो राग मोदी या राग राहुल अलापते रहते हैं| अब कौन समझाए कि हर राग का एक वक्त होता है, उस वक्त के परे इस राग को गाओगे तो हालत होगी खराब| पर खैर हम तो क्या समझाएँ| आप यूँ समझो कि मुल्क का एक और बटवारा होना ही रह गया है- फेस्बूकिस्तान और हिन्दुस्तान! और फेस्बूकिस्तान के प्रधान मंत्री तक चुन लिए गए हैं, ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान के बटवारे से लगभग पहले चचा जिन्ना को शादी का दूल्हा बना दिया गया था|
वैसे मुझे ज़रा भी अंदाजा नहीं है कि आपके यहाँ ‘इलेक्शन’ के वक्त खून-खराबा होता है या नहीं- बाकी ये तो पता ही है कि इलेक्शन के बाद तो आप करवा ही देते हो कई मुल्कों में| हालत तो इधर के नासाज़ बन पड़े हैं| आप समझो कि दंगों का दौड़ बस शुरू ही हुआ| इत्तेफाक तो देखो- हमारे मंटो साहब के दौर में भी दंगे हुए- और करीबन आधी सदी गुज़रने के बाद उनके भतीजे के दौर में भी दंगे ही दंगे! किसी से कहता नहीं कि लोग शैतान समझेंगे- लेकिन अब दंगों के बारे में सुनते ही ज़ोर से ठहाके मारने की तलब होती है! अमा बताओ, ये इंसानों को एक-दूसरे को मारने का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा| एक तरफ आप कोलैटरल डैमेज किये जा रहे हो, दूसरी तरफ इधर के लोग डैमेज पे डैमेज! सबसे मजेदार बात ये कि दोनों एक-दूसरे को गालियाँ भी देते हैं- ये तरीका गलत, वो तरीका सही! हमें माफ करना चचाजान, हमने आपको कभी गाली नहीं दी|
इधर देश की गर्मी थोड़ी बढ़ने दो मैं खत लिख कर आपको इत्तला करता रहूँगा कि माहौल कैसा चल रहा है| तब तक आप देखो स्टैचु ऑफ लिबर्टी को|
आपकी दुआ से ज़िंदा,
मंटो साहब का भतीजा|
First published in Youth Ki Awaaz on October 16, 2013
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