Wednesday, August 28, 2013

चचा सैम को खत, मंटो साहब के भतीजे की तरफ से


चचाजान, 

सब खैरियत? 

आप भी बोलेंगे ये मुआँ मंटो के भतीजे को क्या सूझी कि खत लिखने बैठ गया? तो चचाजान याद दिलाता चलूँ (वैसे तो पूरी उम्मीद है कि आप भूले तो नहीं होंगे) कि हमारे मंटो साहब ने आपको खूब खत लिखे थे| अब ये तो दुनिया जानती है कि मंटो साहब आपको कितनी मोहब्बत करते थे, तो उसूलन उनके इस भतीजे को भी आपसे बे-इन्तिहाँ मोहब्बत करनी चाहिए ना! तो बस ये खत जो है उसी का नमूना है|

चचाजान, आपको कहता चलूँ कि हमने उड़ती-उड़ती खबर सुनी है कि आप सीरिया पर हमला करने वाले हैं? सच कहूँ चचाजान तो दिल को सुकून मिला कि हमारे चचाजान बदले नहीं हैं, वरना तो इस मतलबी दुनिया में इंसान को बदलते वक्त ही कितना लगता है- घंटा, ना तो दो घंटा! आप तो हमारे मंटो साहब के ज़माने में भी वैसे ही रहे और हमारी किस्मत कि हमारे ज़माने में भी वैसे ही| ये हुई कुछ मर्दाना बात| हाँ, और नहीं तो क्या? मर्दाना बात ही तो है ये गोले-बारूद गिराना| ये बेवकूफ औरतें तो बस इंसान के मरने के बाद रोना जानती हैं| इंसान को मारना, उसे जलते देखना, उसकी पसलियों को राख में ढलते देखना, उसकी चमड़ी को पिघलते देखना- कितने मर्दानेपन की बात है ये कौन समझे? लेकिन चचाजान, हम समझते हैं| और आप खुश रहिये, हमारे मंटो साहब भी समझते थे| हम तीनों, अल्लाह की रहमत से असली मर्द हैं| कितना हसीन एहसास होता होगा जब आप ये सोचते होंगे कि आपका दुश्मन अपने आँखों से अपने बदन को जलते देखता होगा, अपने पेट को झुलसते देखता होगा- वही पेट जिसने उसे जिंदगी भर चैन से सोने ना दिया| हम तो खैर अपने मंटो साहब की तरह ही गरीब हैं, तो बस कभी आलू तो कभी अण्डों को उबालते वक्त खुद को चचा सैम समझ लेते हैं| 



ये बताओ चचा, ये इराक का मसला सुलझा? और जो ये कमबख्त अरब देशों में और बेवकूफ जनता है उनका क्या हुआ? चचाजान, सच बताता हूँ, अभी कुछ दिन पहले ही मंटो साहब के खत पढ़ रहा था जो उन्होंने आपको लिखे थे| हमें एहसास हुआ कि मंटो साहब कितना सच बोल रहे थे| आप तो जानते ही हैं चचाजान वो आपके मुरीद थे| कितनी अजीब बात है कि उस वक्त भी पूरी दुनिया बदमाश थी, और इस वक्त भी पूरी दुनिया शैतान है| शरीफ तो चचा बस आप बचे| मैं तो सोचता हूँ चचा मुझसे गलती क्या हुई जो अल्लाह मियाँ ने यहाँ हिन्दुस्तान भेजा? आपके पास भेजते तो बस सोचो हमारा बचपन कितना हसीन होता- सुबह उठा तो पता चला कि आज आपने फलाने जगह हमला बोला, शाम में ढिलाने जगह, रात होते-होते सब जगह| सोचिये ज़रा, वो जो जिगरा हमारा मजबूत होता, फिर एक-आध मुल्क- नेपाल/बंगलादेश तो हम अकेले ही संभाल लेते! अभी भी एक दबी ख्वाहिश तो है कि आपके पास कभी आऊँ, लेकिन ये रूपया तो डॉलर से इतना पीछे हो चला है कि क्या कहूँ| बस बड़ी मुश्किल से प्याज खरीद पाता हूँ, हवाई जहाज तो बस समझिए ख्वाब ही रहे| अच्छा चचाजान हम तो आपके वफादार हैं, कुछ ले-देके हो सके तो बताइएगा| 

बस एक बात कहना चाहूँगा चचाजान, भले ही आपके ही मुल्क वाले क्यों ना सीरिया पर हमले के खिलाफ हो, क्यों ना संयुक्त राष्ट्र इसके खिलाफ हो, आप पीछे मत हटियेगा| इस दुनिया के चौधरी जो ठहरे आप!

बाकी सब तो खैरियत है चचाजान| 

इस गरीब का सलाम आपको और आपकी आने वाली सभी नस्लों को|

सलाम,

मंटो साहब का भतीजा|


This article also appeared in Youth Ki Awaaz on August 29, 2013
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